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पाटल-पाटल है / चंद्रसेन विराट
Kavita Kosh से
किसी के स्पर्शों से मेरी
देह सब पाटल-पाटल है ।
प्राण में जली प्रणय की लौ
काम्य कौमार्य कपूर हुआ,
आरती श्वास, रोम अक्षत
लाज का स्वर सिन्दूर हुआ,
प्यार की पूजा के पल में
समर्पित तन-तुलसीदल है ।
प्रणय-पुष्पों की गंध लिए
साँस के सार्थवाह निकले,
गीत गंधर्वी आत्मा से
पूर्ण करके विवाह निकले,
वृत्ति अब जैसे वंशी है,
मर्म अब जैसे मादल है ।
देह की शिरा-शिरा गोपी
गूँजता मन-वृन्दावन है,
मग्न है महारास में सब
ब्रह्मसुख पाने का क्षण है ।
हृदय के श्याम व्यथाकुल हैं,
प्रीति की राधा विह्वल है ।