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पाटल-पुष्प / विमलेश शर्मा

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मन-सरोवर पर
एक शब्द-कमल खिलता देखना
कदाचित् वैसा ही है
जैसे अमराई में देखना कोयल कूक को
कोयल को नहीं

जैसे अरुण पटल पर सुनना
पंछियों के राग
और अमा में चीन्हना
तारक बिंदुओं के निशाँ!

जीवन को गुनते हुए
यह सुनना आ ही जाता है कि
कुछ उपस्थितियों से
मौन दिव्य हो जाता है
दिशाएँ स्वर्णाभ
और निबिड़ रात प्राणवती!

एक संकोच
एक भयाभास
जब तुम्हारी पनीली उपस्थिति से
तहें खोल सरकता है

मन और विचार में
एक पाटल पुष्प खिलता है!