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पाट कर दोलिया चढ़ल माता कोसिका / अंगिका

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पाट कर दोलिया चढ़ल माता कोसिका
गौ बलि भेलै ।
मैया मत्र्य संसार, चलि भेलै ।
आहो कहां गेल किअ भेल,
तहुँ बीर रानू चलू ओ चलू ।
रानू मत्त्र्य संसार चलू ओ चलू ।।
हमें तोरा पूछियौ माय कोसिका
वचन साधु भाव, गौ मैया ।
किनका दुअरिया कोसी माय हेवै मेजमान
गौ किनका दुअरिया ।
मत्तर्य संसार में बसैये पगुआ मलाह,
हौ हुनके दुअरिया ।
रानू बीर हेवै मेजमान
हो हुनका दुअरिया ।।
घड़ी एक चलबै गो कोसिका माय,
पहर-पन्थ गौ बितलै ।
मैया गौ जूमि गेलै कोसी माय
मत्र्य संसारा गौर जुमि गेलै
कहाँ गेल किअ भेल पगुआ रे मलहा
दुआरे ऊपर एलौ अनूप मेजमान
छलना वचन सुनै पगुआ रे मलहा
एकै हाथ ले लै पगुआ सिंहासन पाट
दोसर गंगाजल नीर ।
पैर धोऊ पाट बैठू तहूँ माय गौ कोसिका
गौ कहि देहु ने कोसिका माय
पंथ के कुशल ।
हमरो कुशल मलहा दस छै कुशल में
कुशल में दुनियां संसार ।
कहु कहु कुशल मलहा अपन कुशल
रौ कहु रे कहु ।
हमरो कुशल कोसीमाय दस छै कुशल में
कुशल में कुछ परिवार ।
एक ते कुशल कोसीमाय
कहलो ने जाय छै गे मैया
बरहा कोसीमाय लयेलौं फुलबारी
सोहो रे फुलवारी गेलै सुखाय ।
जब तोरा फूलै तो मलहा सूखल फुलवारी
तबे हमरा रे मलहा किअ देवे
रे हमरा के ।
जब मोरा फूलैतो कोसीमाय सुखल फुलवारी
गो मैया कोसी गौ कोसी
गहबर देबौ बनाय ।
फूल तोड़ी चढ़ेबौ कोसीमाय
नित गहरबा कोसीमाय
गौ नित चढ़ेबौ फूल तोड़ि ।
आइयौ जाइयौ जाइयौ रौ मलहा
अपन रौ फुलवारी रो,
बाबू देखिहौ गे ।
मलहा अपन फुलवारी देखिहौ गे
कानैत खिझैत मलहा दौड़ल चलि जाय रौ
जूमि जे गेलै मलहा अपन फुलवारी ।
फूल देखिके हँसैये मलहा हँसैये विकरार
अहो दस पांच फूल तोड़ि लिए आबो ।
हौ दस पांच ।
कल जोड़ि के करैये मलहा
कोसी के प्रणाम,
रौ कोसी के प्रणाम ।
जे तोहें कहले कोसी तुरत भै गेलै ।
गौ माता सुखल फुलवरिया गेलै फुलाय
मालव सेवक जन दुहु कर जोड़ि,
गौ गरुआक बेरि कोसी माय
होऊ न सहाय ।।