भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाड़ बगा द्यो बहणा चुप की चुनरिया / रामफल सिंह 'जख्मी'
Kavita Kosh से
पाड़ बगा द्यो बहणा चुप की चुनरिया..
इस चुंदडी नै गले को घोट्या,जुल्म करे बोलण तै रोक्या
जकड़े राक्खी मैं, पिया की अटरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा चुप की चुनरिया
इस चुनरी नै जुल्म गुजार्या, चुनरी म्हं दुबक्या हाथ हमारा
खूब पिटाया हमें सारी हे उमरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा, चुप की चुनरिया
चुनरी पती परमेश्वर बोल्लै, जिंदा जली चुनरी के औल्हे
खड़ी-खड़ी हँस रही, सारी ऐ नगरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा, चुप की चुनरिया
एक दिन चुनरी पड़ैगी बगाणी,मिल कै पडैग़ी तस्वीर मिटाणी
‘जख्मी’ की होगी, पूरी ऐ उमरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा, चुप की चुनरिया