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पाण्डु-मृत्यु / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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बिधि गति तनिको न कोउ जाने पारैय रामा।
सरग सिधारैय पांडु हाय हो सांवलिया॥
पांचो अबोध सुकुमार वो कुमार रामा।
बालापन से दुखवा उठाबैय हो सांवलिया॥27॥
धन धन भीषम बाबा भारत के बंशषा हो।
कुलदीप बाल ब्रह्मचारी हो सांवलिया॥
प्रीत के नजरिया से हेरैय पांचो भाई रामा।
हरदम अखियां में राखैय हो सांवलिया॥28॥
राज-गदी सुन देखी अंधा के बैठावैय रामा।
दास बनी लार चार करैय हो सांवलिया॥
बिदुर से राय करि खूबे सोची साची रामा।
प्रजा केर आस पूरा करैय हो सांवलिया॥29॥
रूप गुण आगर सुशील युधिष्ठिर रामा।
राज काल योग जब भेलैय हो सांवलिया॥
शुभ दिन शुभ घड़ी देखी राज सोंपैय रामा।
जै जै कार मंगल मनावैय हो सांवलिया॥30॥
सब के ते मनुआं लुभावैय ये हो राजवा हो।
पर कपटी के हीया गरमाबैय हो सांवलिया॥
लोभियां ते मने मन सोचता कुघात रामा।
पाण्डव के जड़-धड़ काटे हो सांवलिया॥31॥