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पातअ परि गेलअ ओरे ओरे पाहुन के / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में भोजन के लिए बरातियों के बैठने और भोज्य पदार्थ के परोसे जाने का उल्लेख है।

पातअ<ref>पत्ता; पत्तल</ref> परि गेलअ<ref>पड़ गया</ref> ओरें ओरें<ref>अलग-अलग; किनारे-किनारे</ref>।
साजन बैठल जाँघ जोरि<ref>जाँघ जोड़कर; पालथी मारकर</ref> हरदी, साजन बैठल जाँघ जोरि॥1॥
पानी परि गेलअ ओरें ओरें, साजन बैठल जाँघ जोरि।
मातअ परि गेलअ ओरें ओरें, साजन बैठल जाँघ जोरि॥2॥
दालअ परि गेलअ ओरें ओरें, साजन बैठल जाँघ जोरि।
तरकारी परि गेलअ ओरें ओरें, साजन बैठल जाँघ जोरि॥3॥
धिया परि गेलअ ओरें ओरें, साजन बैठल जाँघ जोरि।
दही परि गेलअ ओरें ओरें, साजन बैठल जाँघ जोरि।
चीनी परि गेलअ ओरें ओरें, साजन बैठल जाँघ जोरि॥4॥

शब्दार्थ
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