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पातर से पान के डटी, पातर नैनमा हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पान की तरह पतली सुंदरी, जिसकी आँखे तीखी और लंबी हें, शृंगार करते समय रो रही है। पति उसे रोते देखकर रोने का कारण पूछता है। वह उत्तर देती है ‘मेरा छोटा भाई, जिसे मैं बहुत प्यार करती थी और जो चलते समय मेरी गोद से उतरता नहीं था, उसकी याद मुझे बुरी तरह सता रही है।’ पति आश्वासन देता है- ‘मैं बाजार लगने पर घोड़ा खरीदूँगा। उसी घोड़े को भेजकर तुम्हारे भाई को बुलवा लूँगा।’ लेकिन उसकी मानिनी पत्नी यह कैसे सहन कर सकती है कि उसके पिता की निर्धनता परिलक्षित हो। स्वाभिमान बहुत बड़ी चीज है, जिसका ज्ञान उस लड़की को है। वह उत्तर देती है- ‘मेरा भाई पैदल ही चला आयगा। तुम्हारा घोड़ा तुम्हें ही मुबारक हो।’

पातर सेॅ पान के डंटी, पातर नैनमा हे।
पातरि सेॅ दुलहिन सोहबी, चीरै नामी केस हे।
केसबा चीरैतेॅ सोहबी, नैनमा ढरै लोरबा हे॥1॥
किय मन परलौ गे सोहबी, माय बाप भैया हे।
किय मन परलौ सोहबी, रसोई एति बेरिया<ref>इस समय</ref> हे॥2॥
नहिं मन परलै परभु, माय बाप भैया हे।
नहिं मन परलै परभु, रसोई एति बेरिया हे॥3॥
हमरो जे छोटे छोटे भैया परभु, नै<ref>नहीं</ref> छोड़ै साथ हे।
चले के बेरिया हे परभु, नै छोड़ै गोद हे॥4॥
हुव दे परात के सोहबी, पसरैते<ref>पसर जायगी; लग जायगी</ref> हटिया हे।
कीनि<ref>खरीद दूँगा</ref> देइबो हँसराज घोड़बा, मँगाय देइबो तोरो भैया हे॥5॥
तोहरियो घोड़बा परभु, तोहरै सोभै हे।
हमरो जे लाल भैया, पाँच बूलि<ref>घूमकर; पैदल चलकर</ref> ऐतै हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>