भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाथर की पीर / मृदुल कीर्ति

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जगत में निज-निज नियति दुहाई।
एक पाथर दूजे पत्थर से कहत पीर अकुलाई।
भाग प्रबल अति महत जगत में, यह सत जगत बताई।
एक पाथर को कूट-कूट के रंग महल चुनवाई।
एक पाथर मग बीच परयो सब ठोकर सों ठुकराई
एक ठीकरा ठोकर खाए, एक प्रभु मूरत पाई।
पुष्प, तोय, पय, चन्दन पूजत, जन -जन ढोक लगाई
एक पाथर गंगा तट तीरे, लहर-लहर तर जाई।
एक पाथर नाली के तीरे, भोगत निज अघमाई
एक पत्थर बन गयी अहिल्या, राम चरण परसाई।
धन्य भाग बढ़ ता पाथर, जिन राम ने चरण छुआई
एक पाथर शिव लिंग बनयो, जिन राम ने शीश नवाई।
पाथर विरल जलधि में तैरे, रामसेतु बनवाई।
वे पाथर तो महा धन्य जिन नाम शहीद लिखाई
वे पाथर माँ हिय से कोमल, वीर को गोद लिटाई।