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पाथर / मनोज शांडिल्य

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ई –
शिलाखंड पर पोइत सेनुर-पिठार
ढरि एक लोटा जल
चढ़ा किछु फूल-पात
बना दैत अछि पाथरकेँ भगमान

आ तकर बाद
केहनो कर्म
कतेको काण्ड
बाँकी बुझथि अपने
बाबा बैद्यनाथ

ओ –
स्थापित कय हृदय मे
ओही भगमानकेँ
रहैत अछि मस्त
आराध्य सेहो व्यस्त

ने धूप-दीप-ताम्बूल
ने फूल-पात आकि नानाविध नैवेद्य
मात्र आस्था
मात्र विश्वास
बाँकी बुझै छथिन्ह
बाबा बैद्यनाथ

ओना –
सभ युग पर रहैत छैक
पाषाण-युगक प्रभाव
पाथरक मनुक्ख
पाथरेक भगमान

पाथर पर
पाथर सँ
पाथरक कथा लिखैत
ईहो बुझिते हेथिन्ह
बाबा बैद्यनाथ