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पानिक समर्थन मे / दीप नारायण

ई मेघक मन जेना बहुत व्याकुल लागि रहल अछि आइ
सुनलियैक जे,
दम्माक बेमारी सँ त्रस्त अछि बसात
खटिया पर पड़ल औधोगिक अस्पताल मे
साँसक देहरी पर छटपटा रहल अछि
ठकमूड़ी लागल अछि जेना गाछ-वृक्ष सभ केँ
चिड़ै-चुनमुनी सभक सेहो मंद अछि सुगबुगाहटि
ई मकान सभ एखने जागल अछि निन्न सँ
भोरे-भोर दुपहर अंगेजने सुरुजक आँखि सेहो
फुजल अछि एखने

एखने,
आमक फुनगी पर सँ हेठ भेल अछि सुरुज आ
खिड़की सँ द' रहल अछि हुलकी

हम देखैत छी,
सुरुज, किछु देर सँ गरमा रहल अछि लोहा
क' रहल अछि काज पर जयबाक तैयारी

जखन कि,
सैंतालीस डिग्री सेल्सियस मे
वाष्पित भ' हमर कविता
पसरि जाय चाहैत अछि समुच्चा ब्रह्मांड मे

भरतीय दण्ड प्रक्रिया संहिताक धारा 144 केँ तहत
घर सँ बहरायब अछि मनाही

ऐहि समय मे
एकगोट अनजान शहर मे
आँखि मे भरने आँगिक पिंड
भरि दुपहरिया
केखनो,
धारक कछेर मे
केखनो,
पोखरिक मोहार पर
केखनो,
इनारक दुवि पर
आ कि,
कोतवाली चौक सँ सोझे पीच धयने
डी. एम. आवास होइत
थाना मोड़, स्टेशन, शंकर चौक आ
चभच्चा मोड़ सँ खुड़पेड़ीया धयने
कविताक धुर पार करैत

घामे-पसीने तर-बतर
गरदनि सुखाएल, मुँहचुरू भेल
थाकल-हारल
माथ पर गमछी लपेटने
मुठ्ठी मे दबौने पियास
लहेरियागंज, इन्द्र परिसर मे
एखने आएल अछि सुरुज हमरा आँगना
एक चुरूक पानि माँगय!

पानि !
जे कि बाँचल नहि अछि आब कतहु पृथ्वी पर

सभ सँ पहिने लोकक आँखि मे सुखा गेलैक
फेर सुखयलै धार, पोखरि आ इनार
आई त' हमर कल सेहो
एनीमियाक गंभीर बेमारी सँ चित भेल अछि

ई बहुत खतरनाक समय मे बीत रहल छी हमरा लोकनि
जखन लोक नहि जानि रहल अछि पानिक मोल
नीलामीक लेल सुखल धार केँ सेहो लागि रहल अछि बोली
पानि पर राजनीति करैत लोक पर हँसि रहल अछि पानि

ठिके, ई बहुत खतरनाक समय मे बीत रहल छी हमरा लोकनि
जतय किछु शिष्ट मंडल
क' रहल अछि पानि बचेबाक वार्ता कय दशक सँ
आ बीच-बीच मे फ्रीजर सँ निकालि पारदर्शी गिलास मे परोसल जाइत अछि पानि
आर त' आर
एहि पानिक रंग लाल अछि
आ ई लाल रंग मिलैत-जुलैत अछि हमरा शोणित सँ
ई हमर शोणित अछि आ
हुनका सभक लेल
शीतल पेय

जेना बिला गेल अछि चिठ्ठी आ तार
तहिना बीला रहल अछि पृथ्वी पर सँ पानि
पृथ्वी पर सँ पानि नहि
जीवन बिला रहल अछि
हमरा सभ आब किछुए दिन बाद
गूगल पर सर्च क' क' देखब पानि
पोखरि,धार आ इनारक पेंटिंग बना क'
टाँगब देबाल पर

जकरा जीबाक अछि कविता
तकरा बचाब' पड़त पानि
जखन हम बचा' रहल हेबैक पानि
तखन हम बचा रहल हेबैक कविता
जीवन बचा रहल हेबैक हम तखन
जेना, विचारक बीना नहि भ' सकैत अछि कविता
पानिक बेतरे तहिना नहि भ' सकैत अछि जीवन

घुरय पड़त हमरा लोकनि केँ
पृथ्वी दिस
प्रकृति दिस
करय पड़त सुरूआति
पानिक समर्थन मे हस्ताक्षर अभियान
मुठ्ठी मे दबौने पियास
एखने आएल अछि सुरुज हमरा आँगना
एक चुरूक पानि माँगय!

दरअसल पानि नहि!
जीवन माँगय आयल अछि।