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पानियों में एक तिनका, आसमानों में खजूर / विनय कुमार
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पानियों में एक तिनका, आसमानों में खजूर।
चांद का रखिये भरोसा पास रहिये या कि दूर।
छोड़ कर अपनी ज़मीनें बस गये मीनार पर
उम्र भर रहिये उगाते आप गमले में गु़रूर।
आब इतना तेज़ तिनके तक गले उम्मीद के
और सरकारी सफ़ाई है कि डूबे बेशऊर।
जंग के लायक़ नहीं हैं आपके ये सूरमा
गर्क़ हैं ये भी उसी में जिस नशे में आप चूर।
आज रहने दीजिए कर लीजिएगा कल बहस
सोचिएगा आप भी यह फ़ल्सफ़ा है या फ़ितूर।
कुर्सियों की रोशनी में कुछ नज़र आता नहीं
इन सियासी षहसवारों का नहीं कोई क़सूर।
आप रहिए सब्ज़ पत्ता, आप रहिए शोख फूल
हम बहुत खुश हैं जड़ों में और बीजों में हुज़ू़र।
राजपथ की राह में जो आ गये तो कट गये
उन दरख्तों के हरे सपने कहीं होंगे जरूर।