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पानी-3 / श्रीप्रकाश मिश्र
Kavita Kosh से
पानी शहर से गायब हो रहा था
और पूरा शहर देख रहा था
पानी पड़ोसी से मांग रहा था
और पड़ोसी के चेहरे से
पानी ग़ायब हो रहा था
मैं देख रहा था
राजनीति करने का यही वह मौक़ा है
जिसे मैं जाने कब से खोज रहा था
मैंने पानी की ओर से कहा :
तीसरा महायुद्ध पानी पर होगा
हवा मेरी बात सुन रही थी
बोली : हम पर क्यों नहीं
आख़िर पानी मेरे चेहरे पर भी होता है
मैंने कहा : तुम्हारे चेहरे के पानी से
ज़्यादा ज़रूरी है
पानी पर तुम्हारा रूख़
तुम आजकल पानी को हवा दे रही हो
मेरी बात पर पानी ने चुपचाप कुछ कहा
और हवा हो गया
है कोई माई का लाल
जो पानी की बात को समझे
और पानी-पानी हो जाए
इक्कीसवीं सदी में।