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पानी कभी दे रही है फुलवारी में / जाँ निसार अख़्तर

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पानी कभी दे रही है फुलवारी में
कपड़े कभी रख रही है अलमारी में

तू कितनी घरेलू सी नज़र आती है
लिपटी हुई हाथ की धुली सारी में