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पानी का गीत / तारादत्त निर्विरोध
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पानी के दरपन पै यों कंकरी न मारो
बिम्बों का जीवन बिखर जायेगा ।
पानी के भीतर भी रहता है पानी,
पानी के ऊपर भी बहता है पानी ।
सागर के पानी को हाथों से तोला तो
लहरों का कंचन उतर जाएगा ।
संभव न पानी के पानी को आँकना,
लगता ज्यों अपने ही भीतर से झाँकना ।
यौवन को दोषों की आँखों से देखा तो
परदे का बचपन उघर जायेगा ।
खारा या मीठा हो पानी तो पानी,
गंदलाया फिर भी सजल है कहानी ।
मोती तलाशोगे निर्जल की तहों से तो
दलदल का दर्शन उभर जाएगा ।