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पानी का चक्कर / विनय कुमार मालवीय
Kavita Kosh से
एक दिवस चूहे जी से
आ बोली चुहिया रानी,
नल में आज सवेरे से
आया नहीं अरे पानी।
एक बालटी पानी की
जरा कुएँ से ले आओ,
हो तैयार नाश्ता तब
फिर छककर के तुम खाओ।
लिए बालटी चूहे जी
निकले तब लेने पानी,
पड़ी राह में दिखलाई
मरजानी बिल्ली रानी।
बिल्ली रानी को देखा
होश हुए चूहे के गुम,
उलटे पैरों भाग लिया
झटपट अरे दबाकर दुम।
उसकी सारी बातें सुन
चुहिया रानी घबराई,
छोड़ो बात नाश्ते की
कहकर यह बोली भाई-
‘जान बच गई बैठो तुम
बैठो भी घर में आकर,
बिस्कुट, केले खा लेंगे
छोड़ो पानी का चक्कर!’