भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी का पुल / विशाखा मुलमुले

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं तुम्हें तुम्हारे आब से चीन्हती हूँ
तुम मुझे मेरी करुणा से
दोआब पर बैठे हम शांत समय में
संगम पर पाँव पखारते हैं

जब टूटकर बिखरते हैं तुम्हारे आँसू
छलक उठती है मेरे नैनो से गंगा - जमुना
हर बार तेरी आँख से टपका मोती
बन जाता मेरी आँख का पानी

मीलों - मीलों खारे जल में
नीले - नीले दर्द के पल में
फ़ासला हो तब भी सुन लेते हैं हम पुकार
जैसे सुन लेती है खारे जल की सबसे वृहद मछली

रक्त संबंध से नही जुड़े हम
पानी का पुल है हमारे मध्य
और दो अनुरागी साध लेते है
पानी पर चलने की सबसे सरलतम कला !