भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी की उम्र / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
हर उस चीज़ के बारे में
कुछ भी कहना ख़तरनाक है
जिसका कोई रंग नहीं होता
जैसे पानी:
पानी की ख़ामोशी
ख़ामोशी के भीतर,
अतल में ;अनल-सी पल-पल
धधकती,छटपटाती भाषा
और फिर
यह कहना भी इतना आसान कहाँ हैं
कि पुराना क़िला पुराना है
या क़िले के पत्थरों से लगा
मेखलाकार,यह ठहरा हुआ पानी
भाषा को देखूँ या पानी को सुनूँ
क्या पानी की उम्र तय नहीं हो सकती
स्वरों का आकाश शून्य में ही
अनहद की भाषा बोलता है