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पानी की बेटी / श्रीप्रसाद

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हमको डर लगता पानी में
मछली डरती नहीं मगर
तुरत डूबती है पानी में
और तुरत आती बाहर

गहरे पानी में जाती है
जहाँ साँस लेना मुश्किल
लेकिन वहाँ खेलती है वह
नन्ही बच्ची-सी चंचल
तैरा करती है यह ऐसे
जैसे भीतर बनी डगर

तितली-सी उड़ती पानी में
उसको कुछ परवाह नहीं
जितना भी गहरा पानी हो
करती है वह आह नहीं
अपना तो घर है धरती पर
पानी में है उसका घर

कैसा लगता होगा भीतर
वहाँ अँधेरा छाया है
किस मनुष्य ने पानी में यों
इतना समय बिताया है
बाहर आना इसे न भाता
लगती पानी में सुंदर

कभी यहाँ है, कभी वहाँ है
कुदुक-फुदुक कर जाती है
जैसे वह पानी के अंदर
करतब खूब दिखाती है
मछली पानी की बेटी है
पानी में चलती सर-सर
हमको डर लगता पानी में
मछली डरती नहीं मगर।