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पानी की साध / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
जुत-जुत जुतते
मौन मापते
नागा किये बिना
कोई दिन
सूरज बटोही बैल ऊंट आदमी
बोझ सहेजे कड़ियल कंधे
तभी तभी तो
पुलकती-पुराती है
पानी की साथ
परीढ़े के चेहरे
मार्च’ 82