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पानी के पोर्ट्रेट / प्रेमशंकर शुक्ल

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जैसे कि मैं हर-हमेश
रचना या देखना चाहता हूँ
धरती, आसमान, हवा, आग के
सुन्‍दर पोर्ट्रेट,

कविता का पानी चीख़ते से ही
मैं पानी का पोर्ट्रेट बनाना चाहता हूँ
कितनी कोशिश करता हूँ
पर ला नहीं पाता वह तरलता,
न प्‍यास बुझाने का वह गुन
न वह कोमलता
और न वह दुर्धर्ष स्‍वभाव

सोचता हूँ दिखे जहाँ पानी
अपनी सम्‍पूर्ण रंगत के साथ
वक़्त का मिजाज़ कि वहाँ
फीकापन घेर लेता है

करीने से शब्‍दों को जोड़-जोड़ कर
जैसे ही तैयार करता हूँ
पानी का ख़ूबसूरत चेहरा
धरती के किसी न किसी पट्टी पर
हो चुका बम का धमाका
कतरा-कतरा बिखेर देता है उसे

पानी बहुत कष्‍ट में है
संकट घिर गया है उसके चहुँफेर
और मैं हूँ कि उसका हँसता-खिलखिलाता
पोर्ट्रेट बनाने की ज़िद में हूँ

पानी का पोर्ट्रेट बनाना
वह भी दिखे जिस में
पानी का पूरम्‍पूर प्रसन्‍न-प्रवाह
कितना मुश्‍किल है इस समय
ज़ुबान से काम लेने वाले
किसी भी मनुष्‍य के लिए !
ओह ! धरती की कितनी कम वीथियों में
मनमोहक हो सका है
पानी का अपना पोर्ट्रेट !