पानी को बांधे रहते, तालाब के किनारे / ऋषिपाल धीमान ऋषि
पानी को बांधे रहते, तालाब के किनारे
रहते हैं फिर भी सूखे,तालाब के किनारे
मिट जायेगी थकन सब, तुम बैठ कर तो देखो
पानी में पांव दे के, तालाब के किनारे
बरसात के दिनों में, कितनों ही को डुबो कर
खुद भी है डूब जाते,तालाब के किनारे
बचपन मेरा अभी तक, बैठा हुआ है यारों
काग़ज़ की नाव ले के, तालाब के किनारे।
जाना संभल के गोरी कपड़ों की गांठ ले कर
बैठे हैं कुछ छबीले,तालाब के किनारे
जब आ गये यहां तो दामन को क्या बचाना
आएंगे कुछ तो छींटे तालाब के किनारे
कुछ याद है तुम्हे भी वो वक़्त वो ज़माना
रहते थे पहरों बैठे,तालाब के किनारे
फँसना नहीं मछरिया तू चाल में किसी की
डाले हैं लोग कांटे,तालाब के किनारे
निकला नहा के कोई, गीला लिबास पहने
'ऋषि' काश हम भी होते, तालाब के किनारे।