पानी पड़ने लगा वह मूसल धार
मानों इन्द्र की द्वार खुली हो।
बादल की गरज से जी दहलता
बिजली की चमक से आँखैं झिपतीं
बायु की लपट से दिल था हिलता
आंधी से अधिक अंधारी बढ़ती।
पानी पड़ने लगा वह मूसल धार
मानों इन्द्र की द्वार खुली हो।
बादल की गरज से जी दहलता
बिजली की चमक से आँखैं झिपतीं
बायु की लपट से दिल था हिलता
आंधी से अधिक अंधारी बढ़ती।