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पानी पर धूप की फुहार / श्याम निर्मम
Kavita Kosh से
पानी पर धूप की फुहार इन्द्रधनुष
उभरा-उभरा !
टिमक-टिमक
गुलमोहर झरता,
आँखों में रंगीनी भरता,
अपशकुनों से डरता-डरता
किरणों की
ज्योतित नगरी में रूपकलश
निखरा-निखरा !
ठुमक-ठुमक
प्यास गले उतरी,
मेघों की पालकी में बैठी
इक परी, पर वो भी कितनी
डरी-डरी रूपसी लगी
बैरागिन-सी क्यों सिंगार
बिखरा-बिखरा ?