भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी बहता है / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पानी बहता है
चाहे कहीं भी हो पानी
वह बह रहा है

पत्‍तेे पर रखा बूँद बह रहा है
बादल में भी पानी बह रहा है

झील-कुआँ का पानी
बहने के सिवा और वहाँ
कर क्‍या रहा होता है!

गिलास में रखा पानी भी
दरअसल बह रहा है

घूँट में भी पानी
बह कर ही तो पहुँचता है प्‍यास तक

सूख रहा पानी भी बह रहा है
अपने पानीपन के लिए

मेरे शब्‍दो ! तुम्‍हारे भीतर भी तो
बह रहा है स्‍वर-जल
नहीं तो कहना कैसे होता प्रांजल

पानी बहता है
तभी तक पानी
पानी रहता है !