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पानी बहुत बचा है कम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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नहीं बचा नदियों में दम,
पानी बहुत बचा है कम।
अगर न होगा पानी तो,
कैसे बचे रहेंगे हम।

खुला छोड़ नल आते हैं,
पानी व्यर्थ बहाते हैं।
भर गिलास पानी लेते,
आधा ही पी पाते हैं।
जितना हमको पीना है,
उतना क्यों न लेते हम।

ढेर-ढेर वर्षा का जल,
नदी बहाकर ले जाती।
जगह-जगह कंक्रीट बिछे,
धरती सोख नहीं पाती।
धरती भीतर तक सूखी,
जो पहले रहती थी नम।

हरे भरे थे वन उपवन,
हमनें हाय काट डाले।
जैसे जल देवता के ही,
हमने हाथ छाँट डाले।
छीने ठौर परिंदों के,
पशु फिरते होकर बेदम।

नहीं बरसता इतना जल,
जितनी हमको चाहत है।
अति वृष्टि या सूखे से,
सारा ही जग आहत है।
सूरज आग उगलता है,
धरा तवे-सी हुई गरम।

पर्यावरण बचाया तो
शायद पानी बच जाये।
पानी अगर बचाया तो,
जीवन आगे चल जाये।
पेड़ अधिक से अधिक लगें,
पानी फेकें कम से कम।