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पानी में पौर अगन नाचे / हंसकुमार तिवारी
Kavita Kosh से
सावन चहुँ ओर सघन नाचे
चंचल मनमोर मगन नाचे।
सन-सन की बीन बजे मेघों का मांदर
झम-झम की झांझ और रिमझिम का झांझर
चपला चितचोर नयन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे
खेतों में धान हँसे बागों में कलियाँ
तरुओं की रानी की वन-वन रंगरलियाँ
यौवन मदभोर भुवन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे
कानन के हाथ बँधी लत्तर की राखी
जाने न नाम रटे कोई बन पाँखी
पानी में पौर अगन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे
फूलों पर तितली का रंग रंगा डैना
नाचती सुहागिन ज्यों देख-देख ऐना
आँखों की कोर गगन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे