भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी / रघुवीर सहाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पानी का स्वरूप ही शीतल है

बाग में नल से फूटती उजली विपुल धार
कल-कल करता हुआ दूर-दूर तक जल
हरी में सीझता है
मिट्टी में रसता है
देखे से ताप हरता है मन का, दुख बिनसता है।