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पानी / रामकृष्ण पांडेय
Kavita Kosh से
पानी, पानी, पानी
बस पानी ही पानी
यह पानी पड़ने का कोई समय नहीं है
दफ़्तर का है समय कि भागम-भाग लगी है
ऐसे में पानी पड़ने का क्या है मानी
पानी, पानी, पानी
बस पानी ही पानी
झल्लाए से रामशरण घर से निकले हैं
इसी मुहल्ले में रहते हैं बहुत दिनों से
रामशरण जी मन ही मन ये सोच रहे हैं
अबकी काम चलेगा इस छाते से कैसे
फटा-चिटा जो छाता उन पर तना हुआ है
क्या इसके बल पर वे मौसम काट सकेंगे
पर छाता क्यों, सारा जीवन ही ऐसा है
कहाँ-कहाँ चिप्पी वे इसमें साट सकेंगे
सोच-सोच कर राम शरण जी थक जाते हैं
पर जीवन-पथ पर आगे बढ़ते जाते हैं ।