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पान स धानि पातरि कुसुम सन सुन्दर रे / मैथिली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पान स धानि पातरि कुसुम सन सुन्दर रे
रतन सिंहासन पर बैसल दर्द व्याकुल रे
काहां गेली किये भेली नन्दी नन्दी दुलरइतीन
आनि दिय भईया बजाय दर्द व्याकुल रे
जुअवा खेलईत आहां भईया स विनती करू हे
भईया आहां धनि दर्द व्याकुल आहिं के बजावथि हे
एक देलनि एहरि पर दोसर देहरि पर रे
तेसरे में बैसल पलंग पर कहु धनि कुशल हे
एक कुशल पिया मन पारु ओ दिन मन पारु रे
बाबा देल पलंगिया ओही पर फ़ुसलाओल रे
एक कुशल धनि मन पारु रे
सेर सेर लड्डुआ खुआएलहु कियो नहिं जानल रे
आई धनि दर्द व्याकुल सब कियो जानल रे


यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से