भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पापा, मुझे पतंग दिला दो / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
पापा, मुझे पतंग दिला दो,
भैया रोज उड़ाते हैं।
मुझे नहीं छूने देते हैं,
दिखला जीभ, चिढ़ाते हैं॥
एक नहीं लेने वाली मैं,
मुझको कई दिलाना जी।
छोटी सी चकरी दिलवाना,
मांझा बड़ा दिलाना जी॥
नारंगी और नीली, पीली
हरी, बैंगनी,भूरी,काली।
कई रंग,आकार कई हों,
भारत के नक्षे वाली ॥
कट जायेंगी कई पतंगे,
जब मेरी लहरायेगी।
चंदा मामा तक जा करके
भारत-ध्वज फहरायेगी॥