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पापा ऑफिस गए / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मेरे पापा मुझे उठाते,
सुबह-सुबह से बिस्तर से।
और बिठाकर बस में आते,
बिदा रोज करते घर से।
भागदौड़ इतनी होती है,
सब मशीन बन जाते हैं।
मेरे शाला जाने पर सब,
फुरसत से सुस्ताते हैं।
तारक शाला चला गया है,
अभी बिदा हुई मीता है।
मम्मी कहती पानीपत का,
युद्ध अभी ही जीता है।
बच्चों के शाला जाने की,
बड़ी गजब है तैयारी।
रोज सुबह से घर-घर में अब,
होती है मारामारी।
चाय-नाश्ता टिफिन बनाना,
बच्चों को नहलाना भी।
बस आने के पहले-पहले,
उन्हें ड्रेस पहनाना भी।
मम्मी-पापा, दादा-दादी,
सब हरकत में आ जाते।
चैन कहाँ जब तक कि बच्चे,
शाला नहीं चले जाते।
उसके बाद हुआ करती है,
पापाजी की तैयारी।
पापा ऑफिस गए तो माँ का,
बोझ हटा सिर से भारी