पापा बहुत याद आते हैं / अशेष श्रीवास्तव
पापा बहुत याद आते हैं
पापा बहुत याद आते हैं...
चाहत को दिल में ही छुपाये
प्यार कभी वह व्यक्त न करते
पर बच्चों में जान थी उनकी
उन के लिये कुछ भी कर जाते...
याद है उनका उँगली पकड़ कर
नन्हे पैरों को चलना सिखाना
हमको अपने कंधों पर बिठा के
दशहरे की आतिशबाजी दिखाना...
अपने लिये कंजूसी करना
बच्चों पर सर्वस्व लुटाना
खुद पैदल दफ्तर को जाना
बच्चों को गाड़ी दिलवाना...
जब मम्मी नाराज़ हो जायेँ
पापा के पीछे छुप जाना
पापा से कर के शिकायत
मम्मी को झूठा डँटवाना...
मेरी असफलता में हों दुखी
पर मेरा मनोबल बढ़ाना
मेहनत कुंजी सफलता की है
मुझको हर दम याद दिलाना...
मेरे अच्छे काम देख कर
मन ही मन उनका खुश होना
मुँह से भले कुछ ना वह बोलें
गर्वित नज़रें उनकी होना...
जब-जब मैं बीमार पड़ जाऊँ
उनका प्यार से सिर सहलाना
रात-रात भर जाग के उनका
मेरे हाथ पैर दबाना...
जब भी कोई मुश्किल पड़ जाये
धैर्य से उसका हल सुलझाना
मैं हूँ ना कह कर के मुझको
हिम्मत को मेरी बढ़वाना...
जब-जब ग़लत राह मैं जाऊँ
सही राह पर मुझको लाना
क्या अच्छा और क्या बुरा है
डाँट-प्यार से ये समझाना...
पैसों की मोहताज़ नहीं हैं
खुशियाँ तो दिल से आती हैं
हमको ये समझाया उनने
प्यार की दौलत ख़ूब लुटाना...
उनने ये बतलाया हमको
काम कोई छोटा नहीं होता
उनने ये सिखलाया हमको
इंसाँ कोई छोटा नहीं होता...
सरल सहज बने तुम रहना
दिखावे पर तुम कभी न जाना
बेईमानी पर मत ललचाना
मन से कभी हार ना जाना...
जब-जब भी औरों को देख कर
कमियों का हम रोयें रोना
देखो नीचे वालों को
उनका ये कह कर समझाना...
उनने हमको ये सिखलाया
उनने कर के ये दिखलाया
प्यार है दौलत कर्म है मेहनत
ईमानदारी सच्चाई है गहना...
रिश्तों की दुनियाँ में अनोखा
पापा ही वह रिश्ता है जो
बच्चे उससे आगे निकलें
हर दम ये दुआ करता है...
कभी न समझें पास नहीं हैं
संग सदा आशीष है उनका
अंश हैं उनके सीख है उनकी
उनका सदा है साथ हमारा...