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पाप परिणाम / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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पाप केर फल फेर युग युग नरका में।
डुबि डुबि उते उपराबैय हो सांवलिया॥
नरका के भोगी भागी धरती में अैले रामा।
बैल होय के घुमैय उ लाचार हो सांवलिया॥
भिखरिया गरीब एक दुवर लांगड़ रामा।
वोकरा पर चढ़ि भिख मांगैय हो सांवलिया॥
नदना के पाप सें त भिखबो न मिलैय रामा।
जूरबो न करैय कि खिलैत तै हो सांवलिया॥
दिन दिन दुबर उदास होवे लागलैय हो।
चमरी के रोंवां झरी गेलैंय हो सांवलिया॥
थर थर कांपैय अरु घुमनी सताबैय रामा।
उठि उठि गिरैय खुर विगैय हो सांवलिया॥
लाठी जुता लात कतबार मार खाई रामा।
अंखिया निपोरि गिरी गेलैय हो सांवलिया॥
भीड़ लगी गेलैय वही ठामा लरि लोगवा के।
दाई माई बाल-युवा-बुढ़ा हो सांवलिया॥
देखि देखि बैल दुख टूक टूक होबैय रामा।
कत पाप मारबो न करैय हो सांवलिया॥
सब कोय लुटावे रामा धरम करमुआं हो।
देखि देखि ऐहन कलेश हो सांवलिया॥
वही बेरिया आई गेलैय कसमीन एक रामा।
बेशबा के दया उमरैलैय हो सांवलिया॥
सबक बाटत देखि करम पुन-धरम हो।
मने मन इशवर मनावैय हो सांवलिया॥
अपना जानत परभु तनिको न पुनमा हो।
देहिया से करि कभी पैलां हो सांवलिया॥
सूना विसूना यदि भूलहु से पुन रामा।
हमरा सें होय गेल होबैय हो सांवलिया॥
त वो हो पुन बैलबा के लेल हम सोंपती हो।
अरज सुनहु गिरीधारी हो सांवलिया॥
तुरत हीं प्राण के पखेरु उड़ि गेलैय रामा।
जनम लेलकैय बभना के घर हो सांवलिया॥
पुरब के हाल सभे जानेय वोही बभना।
कत पाप काटी फेरु अैलैय हो सांवलिया॥
एक दिन कसमीन-नटीन घर पहुँचैय रामा।
नरक के बतिया बतावे हो सांवलिया॥
कत दिन नरका में पाप के कारण रामा।
डुबि डुबि कर उपरैला हो सांवलिया॥
आदि से आखिर केर बतिया सुनाबैय रामा।
टप टप लोर अंखियां डारैय हो सांवलिया॥
धन धन देवी तोहर पुन के परताप रामा।
अधम सन चोला तारि पैला हो सांवलिया॥
मुरखा के बोध करु कोन पुन करि रामा।
तारि देल हो अधम शरीर हो सांवलिया॥
इतनो बचनियां जब सुनैय कसमीनया हो।
हरि के सुमरि उते बोलैय हो सांवलिया॥
अपना जानत बामन हम छीय पपीया हो।
तनिको न दान पुन कैला हो सांवलिया॥
परान से पियार एक हीरामन तोतबा हो।
पालिये पोसिये घर राखों हो सांवलिया॥
ओकरो शबद रामा गीता जी के बोलिया हो।
चखि चखि रोज रसपियों हो सांवलिया॥
अब सुनु फूल सन, कोमलवदनी रामा।
पियारी दुलारी शैलवाली हो सांवलिया॥
मन केर मैल छारि अंखियां में जल डारि।
तोता से अरज उत, करैय हो सांवलिया
दूध भात देवो तोता मीठ-मीठ फलवा हो।
तोरो मुँहे गीता सुने चाहो हो सांवलिया॥
कोना पुन गीता मैया कंठ होई गेलो रामा।
कि हमरोह के सुनबा योग हो सांवरिया॥
सुनु सुनु विप्रदेव कना हम ऐलां रामा।
बन उपबन से इठाम हो सांवलिया॥
अखियां में नाचैह उते मुनिबर के कुटिया हो।
अगर सुगंध मह कावैय हो सांवलिया।
मिरदुल समीर बहैय लता-पात-गाछ ढ़ौलैय।
फूल फूल भौरा मड़रावैय हो सांवलिया॥
कुदकत फिरैय मृग कुँज कुँज चरैय रामा।
मनमां लुभाबै मोर नाच हो सांवलिया॥
हरी भरी बगिया में झर झर झरना हो।
बिमल धवल धार बहैय हो सांवलिया॥
झूमि झूमि पढ़ैय रामा अरजुन विषाद योग।
बाल-ब्रह्मचारी वही ठाम हो सांवलिया॥
अमरित वेर रामा उगलो भूरुकवा हो।
खोड़हर से बाहर में आबों हो सांवलिया॥
मने मन सुमिरों रामा श्री भगवनमां हो।
पल छीन घर बिलमावों हो सांवलिया॥
पंखिया पसारी उड़ों गीता जी सुनैला रामा।
मुनिवर के बगिया में रोज हो सांवलिया॥