भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाप / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
दुनिया बतावै पाप
पाप री नीं
खुद री कोई भासा - बोली
नीं कोई परिभासा
अेक पाप थारो
अेक पाप म्हारो
जद सागै हां
तो कियां हुया न्यारो -न्यारो
लोगां री निजरां मांय पाप
हुवै तो हुवै
उण पापी दुनिया री
थूं क्यूं सुणै
कैवण दै
कैवणिया कैवैला
जंवाई तो इयां ई जीमैला।