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पामाले-आसमां हूँ कि उठते नहीं क़दम / मेला राम 'वफ़ा'
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पामाले-आसमां हूँ कि उठते नहीं क़दम
मरदूदे-कारवां हूँ कि उठते नहीं क़दम
या चैन से न बैठने देता था पाए-शौक़
या इतना नातुवां हूँ कि उठते नहीं क़दम
सुनता हूँ सख़्त सुस्त बहुत हमराहों से मैं
इस पर भी बे-ज़बां हूँ कि उठते नहीं क़दम
या रब ये जलवा-गाह हूँ किस रश्क़े-माह की
या रब ये मैं कहां हूँ कि उठते नहीं क़दम
होता है शुबह राहनुमा पर रक़ीब का
इस दर्जा बदगुमां हूँ कि उठते नहीं क़दम
राहे-तलब में आब्ला-पाई से ऐ 'वफ़ा'
अपने पे भी गिरां हूँ कि उठते नहीं क़दम