पामाल हो गए सब अरमान कुछ किये बिन
ख़मयाज़ा हमने भुगता कुछ बोले, कुछ कहे बिन
मुश्ताक चाँदनी की मैं कल थी आज भी हूँ
पर चाँद जाने क्योंकर, वापस गया मिले बिन
कुछ तो मलाल दिल में इस बात का रहा है
बादे-सबा भी लौटी बूए-वफा दिये बिन
इतने रक़ीब मेरे, इक तो रफ़ीक़ होता
जो लौट कर न जाता, मुझसे मिले जुले बिन
इक पल न दिल मेरा ये, महरूम याद से था
मुशकिल था साँस लेना, यूँ आह भी भरे बिन
बचना मुहाल ‘देवी’ फुरकत की आग से है
मुमकिन नहीं सलामत, अरमाँ रहें जले बिन