पायताने बैठ कर ५ / शैलजा पाठक
अम्मा कहती थी सवा किलो की करधनी थी
जब आंगन में भाई ने चढ़ाई
पूरा गांव उचक कर देखने लगा
सोलह छड़ा और भारी भरकम पाजेब
जिसके घूँघरू बजते ही अम्मा अपने साड़ी का
पल्ला सर पर खींच लेती
कमर नहीं रही, ना रहे पैर, गहने की छनमन जि़दा है
डेढ़ तोले की अंगूठी जिसमें जड़ा था गुलाबी पथर
समय के साथ खूब घिसा तीन नया टांका डलवाकर
अपनी तर्जनी में पहने रही अम्मा
आखिरी अंगूठी उतारने पर
कुछ ना कहीं आंगन बिलख उठा
गहनों की एक पोटली है...गठरी भर अम्मा
और ना जाने कितनी कहानी...
हाथी, डिजाइन के कंगन की अलग कहानी
और जाली वाले कंगन की अलग
मुंह दिखाई में मिला झुमका हमेशा
कुछ हल्का ही लगा अम्मा को
ममिया सास रही, यही दी बहुत है
और अम्मा उस हाथ में पहरे वाला आर्मलेट?
अम्मा बड़े ताव से उठाती उसमें लगे मीना के बारे में बताती
कहती बनारस के काशी साह के
यहां से खास बनवाया गया
बसे में रखी नीली-पीली लाल हरी
फीकी चटक साडिय़ों के किस्से
बसे के अतल में दबा चांदी का
तमाम सिका झम से बज जाता
अम्मा तौलिया डाल कर दबा देती
ऐसे ही किस्सों सी भरी थी अम्मा की ज़िन्दगी
समय कोई भी हो
खाली उकसा दो कि शुरू हो जाये अम्मा
तब का हुआ कि...
अब सिधोरे से बंधी जर्जर डोरी में
तुम्हारी अटूट आस्था बंधी है
तुम्हारे गहनों की कहानियों में
ना जाने कैसी उदासी चिपकी है
पीढा पड़ा है उपेक्षित जो खरीदा था फेरी वाले से
केत्ता मोल चल करे कि 50 बोलत रहा 35 में दिहा
वाह रे अम्मा...पर सब छोड़ गई
गहनों-कपड़ों से भरा लदा है घर
बक्से के अतल में सिक्के
पर अब खनकते नहीं...रुदन करते
तौलिया आंसू पोंछता सा
पिता भरी नजर से देख लेते हैं
तुम्हारी कपड़ों की अलमारी
योहारों के कितने रंग बंद हैं उसमें
भूरे एलबम की सफेद-काली फोटो में
गहनों से लदी फंदी अम्मा सकुचाई सी
पिताजी का जवाहर कोट
और वीर स्टूडियो...
फ़क्र से बोलती रही यों कहानियां
उदास संदूक में बंद कपड़े उदास से हैं
कमर की करधनी और पाजेब गूंगे
सिकड़ी कितनी थी...सब उलझी सी है
सारे हिसाब गड़बड़ाए हैं अम्मा
आज ही अलमारी से मिला है नया बैग
कब खरीदा था? कहां जाने की तैयारी चुपचाप
कई बार ऊपर वाला न्योता छपवाता है
उस पर एक का नाम लिखा होता
यहां जाना बड़ा जरूरी होता है
निचाट उदास बादल को फाड़ कर देखो
हम अवाक है तुम बोल रही हो
इधर से उधर से गहनों से कपड़ों से
बाबा के आंगन में फैला बनारस का गहना
रात मुंह खोले किस्सा सुन रही है
तब का हुआ कि...।