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पायल / बाबा बैद्यनाथ झा

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छम छम नाच रही है राधा,
कर सोलह Ük`aगार।
लुभा रही है मोहन को यह,
पायल की झंकार।

कृष्ण बाँसुरी बजा रहे हैं,
निकले मधुरिम तान।
खग मृग सह प्रमुदित वृन्दावन,
लगता स्वर्ग समान॥
मन्त्रमुग्ध हो सुनतीं गायें,
नहीं सुहाती घास।
आज गोपियाँ नाच रही हैं,
कृष्ण रचाते रास॥

सभी परस्पर आनन्दित हो,
करते हैं मनुहार।
लुभा रही है मोहन को यह,
पायल की झंकार।

कई गोपियाँ अगणित कान्हा,
सबके दिव्य स्वरूप।
सभी देवगण देख रहे हैं,
नभ से रूप अनूप॥
सृष्टि काल से अबतक ऐसा,
हुआ नहीं था नृत्य।
जन्म-जन्म से जमा हुए थे,
उनके अनुपम कृत्य।

वांछित वर देने आये थे,
बनकर कृष्ण उदार।
लुभा रही है मोहन को यह,
पायल की झंकार॥

शक्ति स्वरूपा राधा रानी,
कृष्ण स्वयं भगवान।
इनमें कुछ भी भेद नहीं है,
दोनों एक समान॥

महा विष्णु ही हैं मनमोहन,
राधा उनकी शक्ति।
ये ही हैं आराध्य हमारे,
उनकी करते भक्ति।

पूर्ण शक्ति के साथ हुआ था,
यहाँ कृष्ण अवतार।
लुभा रही है मोहन को यह,
पायल की झंकार।