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पायीं जो कुर्सियाँ सभी वादे बदल गये / रंजना वर्मा

पायीं जो कुर्सियाँ सभी वादे बदल गये
जो भी थे सभी नेक इरादे बदल गये

क्या चाल थी वज़ीर की मालूम ही नहीं
शह मात के इस खेल में प्यादे बदल गये

पढ़ के नमाज़े रुख़्सती सब लोग थे चले
मालूम नहीं कैसे जनाज़े बदल गये

रंगीन थे मिज़ाज जो क्या बात हो उनकी
है दौर का क़सूर जो सादे बदल गये

छू कर तेरे दामन को इधर आयी जो हवा
आंखों में बसे सारे नज़ारे बदल गये

सीने पे तीर खाने को बेज़ार था कोई
नज़रों के मगर उस के निशाने बदल गये

मासूम थी निगाह दिलों में भी सादगी
सोचा ही नहीं उस से जियादे बदल गये