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पायी नहीं वफ़ा तो फिर किसलिये गिला / रंजना वर्मा
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पायी नहीं वफ़ा ग़र तो किसलिये गिला हो
कोई नहीं ज़रूरी हर शख़्स बावफ़ा हो
यों तो हुआ ही करते हैं हादसे हमेशा
पर साथ अब हमारे कोई न हादसा हो
रहने को हो महल ही ये कब हुआ ज़रूरी
लेकिन सिरों पर सबके छत का तो आसरा हो
रातें रहें अँधेरी तब भी न बात कोई
पर राह दिखाने को इक दीप तो जला हो
चुपचाप दिया करते जो अपनी शहादत हैं
तारीख़ के पत्थर पर कोई नाम तो खुदा हो
अश्कों से भरा तकिया करवट में लिखी रातें
अब और क्या बतायें तोहफ़े में जो मिला हो
राहों में ज़िन्दगी की चलना पड़ा अकेले
चाहत न हुई दिल में कोई साथ काफिला हो