पारख-पंचक / अछूतानन्दजी 'हरिहर'
जब तक पारख आय ना, अनुभव तीन प्रकार।
हरि-पद निर्भय पाय ना, सत्य विवेक विचार॥
आदि सृष्टि या उत्पत्ति में तो, सब सर्वज्ञ समान हुए.
पाँच तत्व का ढाँचा ये है, देह इसी में प्राण हुए.
तत्वों के मिश्रण में जागी, जोति विलक्षण भान हुए.
जीव, जीवन शक्ति विकासक और प्रकाशक ज्ञान हुए॥
ज्ञानकोष मानुष में पूरे और अधूरे नास्तिक हैं।
अन-अस्तित्व उपासक, नास्तिक, अस्तिवान ही आस्तिक हैं।
जीव ब्रह्म अद्वैत ज्ञान ही, सत्य शुद्ध है सात्विक है।
मानव हृदयब्रह्म का मंदिर, इसे जानते तात्विक हैं॥
जड़ चेतन सत्ता-मिश्रण से, सभी सर्जना फैली है।
यही आत्म-अनुभव संतों का, पारख-पद की शैली है।
व्यापक ब्रह्म सचेतन प्रत्यक्ष, अन्य कुगति मति थैली है।
निर्विकार है ब्रह्म एक बस और बात सब मैली है॥
है यथार्थ एक साम्य संगठन, शान्ति प्रचारक सुखकारी।
जिसमें सभी मानवी हित हों, सम-दरशी अनुभव-धारी।
आदि-वंश की शाखाएँ मिल आनंदित हों नर-नारी।
आदिधर्म पद मनुष्यत्व लें, 'अछूत' और अत्याचारी॥
सब देशों में आदि-वंश ज्यों, मानवता से सम होते।
त्योंही आदि-हिंद के वासी, नहीं किसी से कम होते।
हिन्द मातृ भाषा-भाषी भी, सब "हरिहर" एकसम होते।
यदि छल-छिद्र छूत छैकारी, आदि-हिन्दु आश्रम होते॥