भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पारस / शार्दुला नोगजा
Kavita Kosh से
मैं तो पारस हूँ , मेरी जात है सोना करना
अपनेपन की उम्मीद दोस्त मुझसे क्या करना!
हर मोड़ पे हो जिसके बिछुड़ जाने का डर
ऐसे राही के संग यारों सफ़र ना करना।
गर फूल खिलाते हो दिल की मिट्टी में
एक आँख में सूरज़, एक में शबनम रखना।
मैंने इन होठों से जिनको छुआ था जाते समय
उसने छोड़ा है उन जख़्मों पे मरहम रखना।
वो मेरे आँख का मोती था या हाथों का नगीना
जो गुम गया अब उस पे बहस क्या करना!
मुझको खुदा दुनिया में गर फिर लाएगा
दिल मेरा बड़ा, उमर मेरी ज़रा कम रखना।
मैं तो पारस हूँ, मेरी जात है सोना करना
अपनेपन की उम्मीद दोस्त मुझसे क्या करना!