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पार्क में एक दिन / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
इस पार्क में जमा होते जा रहे हैं लोग
कोई चुपचाप निहार रहा है
पौधों की हरियाली और फूलों को
कोई मग्न है कुर्सी पर बैठकर
प्रेम क्रीड़ा करने में,
कोई बढ़ रहा है आगे देखने की उत्सुकता लिए
कोई वहीं बैठ गया है घास पर
थोड़ी ठंडक का आनन्द लेने
कई बच्चे अलग-जगह पर हैं
झूला झूलते या दूसरे उपकरणों से खेलते हुए
सभी लोग फुर्सत में हैं, फिर भी व्यस्त।
अब थोड़ी देर में फव्वारे चालू होंगे
रंग-बिरंगे मन मोहते हुए
यही आख़िरी ख़ुशी होगी लोगों की
फिर
लौटने लगेंगे
वे वापस घर
कोई परिश्रम नहीं फिर भी थके हुए ।