पार्वती-मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 12
।।श्रीहरि।।
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 12)
बेगि बोलाइ बिरंचि बचाइ लगन जब ।
कहेन्हि बिआहन चलहु बुलाइ अमर सब।89।
बिधि पठए जहँ तहँ सब िसव गन धावन ।
सुनि हरषहिं सुर कहहिं निसान बजावन।90।
रचहिं बिमान बनाइ सगुन पावहिं भले।
निज निज साजु समाजु साजि सुरगन चले।91।
मुदित सकल सिवदूत भूत गन गाजहिं।
सूकर महिष स्वान खर बाहन साजहिं।92।
नाचहिं नाना रंग तरंग बढ़ावहिं।
अज उलूक बृक नाद गीत गन गावहिं।93।
रमानाथ सुरनाथ साथ सब सुर गन।
आए जहँ बिधि संभु देखि हरषे मन।94।
मिले हरिहिं हरू हरषि सुभाषि सुरेसहि।
सुर निहारि सनमानेउ मोद महेसहि।95।
बहु बिधि बाहन जान बिमान बिराजहिं।
चली बरात निसान गहागह बाजहिं।96।
बाजहिं निसान सुगान नभ चढ़ि बसह बिधुभूषन चले।
बरषहिं सुमन जय जय करहिं सुर सगुन सुभ मंगल भले।।
तुलसी बराती भूत प्रेत पिसाच पसुपति सँग लसे।
गज छाल ब्याल कपाल माल बिलोकि बर सुर हरि हँसे।12।।
(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 12)