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पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये / ‘शुजाअ’ खावर
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पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये
बीच दरिया डूबना भी हो तो इक पुल चाहिये
फ़िक्र तो अपनी बहुत है बस तगज्ज़ुल चाहिये
नाला-ए-बुलबुल को गोया खंदा-ए-गुल चाहिये
शख्सियत में अपनी वो पहली सी गहराई नहीं
फिर तेरी जानिब से थोडा सा तगाफ़ुल चाहिये
जिनको क़ुदरत है तखैय्युल पर उन्हें दिखता नहीं
जिनकी ऑंखें ठीक हैं उनको तखैय्युल चाहिए
रोज़ हमदर्दी जताने के लिए आते हैं लोग
मौत के बाद अब हमें जीना न बिलकुल चाहिए