पार करना है नदी को तो उतर पानी में / मख़्मूर सईदी
पार करना है नदी को तो उतर पानी में
बनती जाएगी ख़ुद एक राहगुज़र पानी में
ज़ौक़े-तामीर था हम ख़ानाख़राबों का अजब
चाहते थे कि बने रेत का घर पानी में
सैले-ग़म आँखों से सब-कुछ न बहा ले जाए
डूब जाए न ये ख़्वाबों का नगर पानी में
कश्तियाँ डूबने वालों के तजस्सुस में न जाएँ
रह गया कौन, ख़ुदा जाने किधर पानी में
अब जहाँ पाँव पड़ेगा यही दलदल होगी
जुस्तजू ख़ुश्क ज़मीनों की न कर पानी में
मौज-दर-मौज, यही शोर है तुग़यानी का
साहिलों की किसे मिलती है ख़बर पानी में
ख़ुद भी बिखरा वो, बिखरती हुई हर लहर के साथ
अक्स अपना उसे आता था नज़र पानी में
शब्दार्थ :
राहगुज़र=रास्ता; ज़ौक़े-तामीर=निर्माण की रुचि, ख़ानाख़राब=बेघरबार; सैले-ग़म=दुख की बाढ़; तजस्सुस=खोज; जुस्तजू=तलाश; ख़ुश्क=शुष्क; मौज-दर-मौज=लहर पर लहर; तुग़यानी=तूफ़ान; साहिल=किनारा; अक्स=बिम्ब।