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पालते हैं धर्म / ओम पुरोहित ‘कागद’

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गांव में
अकाल है
साक्षात शिव रूप
नमस्कार है !

मेहमान होता है
भगवान
भूख पधारी है
पसरी है
आंगन में
स्वागत है !

दादा जी का अस्थिपंजर
खुराक के बिना
सर्दियों में
करता है नृत्य
और साथ देते हैं
पिताजी भी !

पोतों की
अकाल मृत्यु पर
दादी की आंखें
बहाती हैं
गंगा-यमुना
झर-झर
दादी नहाती है
हमेशा
करती है कीर्तन ।

मां के घुटने
गाते हैं
हरीभजन
बहुएं
अलापती हैं संग में
हमेशा ।

पूरे घर में
बरसात की
वंदना है
भावना है
नहीं मरे
कोई जीव-जन्तु
अन्न-पानी के अभाव में।

रखते हैं मर्यादा
पालते हैं धर्म !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"