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पालने से निकल के देखो तो / कुमार अनिल
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पालने से निकल के देखो तो
अब ज़मीं पर भी चल के देखो तो
कुछ तो दूरी फ़लक से कम होगी
तुम ज़रा-सो उछल के देखो तो
इस जहाँ को बदलने निकले हो
पहले ख़ुद को बदल के देखो तो
ढलता सूरज बहुत दुआ देगा
तुम चिराग़ों-सा जल के देखो तो
चाँद छत पर बुला रहा है तुम्हें
संग उसके टहल के देखो तो
गा रही है हवा 'अनिल' की ग़ज़ल
घर से बाहर निकल के देखो तो