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पालविहीन साम्पन / सुलोचना वर्मा / महमूद नोमान
Kavita Kosh से
नदी के सिरहाने मेघ हत्या की संध्या
कामुक हो उठती हैं बारिश की सखियाँ
खोल देता है साड़ी की तह
जलवाही जहाज़, बसन्त के वक्ष पर
बह गया था मैं पालविहीन साम्पन<ref>लघु नौका</ref> में
महमूद नोमान की कविता : ’বৈঠাবিহীন সাম্পান’ का अनुवाद
मूल बांग्ला से अनुवाद :सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
বৈঠাবিহীন সাম্পান
নদীর সিথানে মেঘহত্যার সন্ধ্যাতে
বৃষ্টির বান্ধবীরা কামুক হয়ে যায়
পণ্যবাহী জাহাজে সারেঙের বুকে
খুলে দেয় শাড়িটির ভাঁজ -
আমি ভেসে ছিলাম বৈঠাবিহীন সাম্পানে।
शब्दार्थ
<references/>