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पालों से फहरे दिन फागुन के / श्याम नारायण मिश्र
Kavita Kosh से
सेमल की शाखों पर
शत्-सहस्त्र कमल धरे,
कोहरे से उबरे,
दिन फागुन के ।
उबटन-सी लेप रही
आँगन में,
हल्दी-सी चढ़ी हुई
बागन में,
धूप गुनगुनी,
पत्तों को धार में
नचा रही,
अरहर के खेत में
बजा रही,
पवन झुनझुनी ।
मड़वे पर बिरहा
मेड़ों पर दोहरे,
लगा रहे पहरे,
दिन फागुन के ।
आँखों में उमड़े
हाट और मेले,
चाहेगा कौन
बैठना अकेले,
द्वार बंद कर ।
दिन गांजा-भंग पिए
रात पिए ताड़ी,
कौन चढ़े–हाँके
सपनों की गाड़ी,
नेह के नगर ।
साँझ औ’ सवेरे
नावों पै ठहरे,
पालों से फहरे,
दिन फागुन के ।